21 April 2008

बिहार बनाम बिहारी अस्मिता

शिवनंदन राम


बिहार एक समस्या मूलक प्रांत है. यहां पर चौवालिस प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करती है, जबकि देश का औसत प्रतिशत सिर्फ बाईस है. साक्षरता के मामले में भी यह देश के सर्वाधिक पिछडे हुए राज्यों में एक है. सन् 2001 की जनगणना के अनुसार यहां पर साक्षरता का दर 4757 प्रतिशत है जबकि देश की कुल साक्षरता दर 6538 प्रतिशत है. राज्य की 90 प्रतिशत जनता कृषि अथवा कृषि जनित छोटे-छोटे उद्योगों पर आश्रित है. राज्य के बॅटवारे के बाद यहां के 70 प्रतिशत प्राकृतिक संसाधन झारखंड को चले गये, बिहार के जिम्मे सिर्फ 30 प्रतिशत ही रहे, जबकि आबादी के मामले में इसके ठीक विपरीत हुआ यानी 70 प्रतिशत बिहार को एवं मात्र 30 प्रतिशत झारखंड को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राज्य की दशा एवं दिशा सुधारने हेतु अनेक प्रयत्न हुए, परन्तु परिणाम वही ढाक के तीन पात.

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति जनजाति आयोग का कहना है कि बिहार दिनानुदिन गरीब होता जा रहा है. चालू दशक में आम आदमी की आमदनी में कमी आयी है. गरीबों को संख्या में

ईजाफा हुआ है. 1975 में इनकी संख्या तीन करोड तैंतीस लाख थी, जो अब बढक़र चार करोड तिरेपन लाख हो गयी है. भूमि सुधार आंदोलन के चलते वहां पर गरीबों की संख्या में स्पष्टतः कमी आयी है. परन्तु बिहार में जीविका का मुख्य स्रोत होते हुए भी भूमि सुधार को आन्दोलन का रूप कभी नहीं दिया गया.

भूमि सुधार आंदोलन की विफलता बिहार में उग्रवाद आंदोलन के पनपने का मुख्य कारण रहा है. नीचे तबके के लोगों में घोर निराशा एवं आक्रोश है. अपनी गलत सोच के कारण वे उग्रवाद का सहारा ले रहा है. प्रजातांत्रिक पध्दति से उनका विश्वास उठ गया है. बैलेट की जगह बुलेट में उनकी आस्था है. मध्य बिहार उग्रवाद से पूरी तरह प्रभावित है. इसकी वजह से हजारों हिंसा की भेंट चढ चुके हैं. इनके मुकाबले के लिए जमीन्दारों ने भी रणवीर सेना नामक संगठन खडे क़र लिये हैं. आये दिन इन दो परस्पर विरोधी संगठनों में संघर्ष जारी है और जारी है निर्दोष लोगों का कत्लेआम.

विधि-व्यवस्था के अभाव में विकास कार्य अवरूध्द है. यहां से प्रतिभाओं के साथ व्यवसायियों का भी पलायन हो रहा है. अब तक बहुत सारे व्यवसायी बिहार छोडक़र जा चुके हैं. सर्वत्र अंसतोष एवं भय परिख्यात है. गरीबपरेशान हैं अपनी गरीबी से.अमीर परेशान है अपनी सम्पत्ति बचाने में.

परन्तु यहां एक विचारणीय प्रश्न उठता है कि क्या सिर्फ बिहार ही इन त्रासदियों को झेलने के लिए अभिशप्त है या बिहार के बाहर के राज्यों में भी इस तरह का परिदृश्य है. क्या वहां भी हिंसक गतिविधियां होती हैं. उत्तर स्पष्टत: स्वीकारात्मक होगा.उग्रवादी गतिविधियों में पूर्वोत्तर राज्यों, आन्ध्र प्रदेश अथवा जम्मू-कश्मीर में जितने लोग मौत के घाट उतार जा चुके है, उनकी तुलना में बिहार की स्थिति काफी अच्छी है. विकास संबंधी अन्य भौतिक उपलब्धियों की बात करे तो निकटवर्ती राज्यों यूपी, उडीसा, बंगाल, असम अथवा पूर्वोत्तर राज्यों की तुलना में हमारी उपलब्धियां कम नहीं है.अन्न के मामले में बिहार आत्म निर्भर हो चुका है.शांति और व्यवस्था अब काबू में है.बडे बडे बाहुबली जेल की सलाखों के पीछे लाये जा चुके हैं. जो बाहर हैं उनका मनोबल टूटा है. पंचायती राज के गठन के बाद से ग्रामीण परिदृश्य में स्पष्ट बदलाव दृष्टिगोचर हो रहा है. प्रशासन में आम आदमी की सहभागिता बढी है. भूमि सुधार कार्यक्रम को जोर-शोर से लागू करने की तैयारियां चल रही है.

प्रतिभा, राजनीति और धर्म में तो बिहार का लोहा सारी दुनिया मानती है. बिहार के छात्रअपनी प्रतिभा के चलते सभी दुनिया में बिहार का नाम रौशन कर रहे हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय हो या जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय या फिर अमेरिका का नासा या सिलिकन वैली ही क्यों न हो, सर्वत्र छाये हुए हैं, सत्ता और अर्थ पर उनकी पकड क़ाफी मजबूत है.

बिहार का अतीत अत्यंत ही गौरवपूर्ण एवं वैभवशाली रहा है. तीर्थकर महावीर एवं भगवान बुध्द इसी माटी की देन हैं, जिन्होंने शांति और अहिंसा का संदेश सारी दुनिया को दिया. अशोक, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य आदि चक्रवर्ती सम्राट यहीं पैदा हुए थे.


परन्तु प्रश्न यहां यह उठता है कि इतने वैभवशाली अतीत और प्रगतिशील वर्तमान के होते हमने अपनी ऐसी हालत क्यों बना रखी है. हम अपनी हालत पर सदैव रोते क्यों रहते हैं.हमें अपनी बिहारी अस्मिता को छिपाकार जीने में क्यों आनन्द की अनुभूति होती है. अपने बिहारीपन पर हमें गौरव का एहसास क्यों नहीं होता. हमें शर्म का बोध क्यों होता है. एक बंगाली, मद्रासी अथवा मराठी को अपने को बंगाली, मद्रासी अथवा मराठी कहने में स्वाभिमान एवं आत्म गौरव का बोध होता है. बल्कि सच माने तो वह बंगाली, मद्रासी अथवा मराठी पहले हैं, बाद में भारतवासी. वास्तविकता तो यह है जो अपने सूबे को प्यार न कर सका वह देश का सपूत कैसे हो सकता है? क्या इन पंक्तियों का मनन हमने ठीक से किया ेहै-

अंय निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्

उदार चरितानान्तु बसुधैव् कुटुम्बकम्.

जी नहीं. कवीन्द्र रविन्द्रनाथ टैगोर देश ही नहीं दुनिया के गिने-चुने विद्वानों में से एक थे. उन्होंने अपने सूबे बंगाल को आमार सोनार बंगलादेश कहा था. बंगाल के बाहर के लोग जो हिंदी भाषी हैं, उन्हें हिन्दोस्तानी कहकर संबोधित किया था. क्या यह उनकी संकीर्ण मनोवृति का परिचायक है, जी नहीं. जिसने खुद को प्यार करना सीख लिया, वही खुदा का सच्चा बंदा है. चाहे जहां कहीं भी हो, जिस दिन एक एक बिहारी अपने को बिहारी कहने में गौरव महसूस करेगा उस दिन बिहारी अस्मिता की अद्भुत पहचान बनेगी. बिहारियों का अपना एक संगठन होगा. इनकी एक अलग जमात होगी. आज जो लोग बिहारियों को नफरत की नजर से देखते हैं उल्फत की नजर से देखने को मजबूर होंगे.सच मानो अगर इनका अपना मजबूत संगठन हो गया तो दिल्ली प्रदेश की सरकार इनकी अपनी होगी.दिल्ली में बिहारियाें की संख्या चालीस लाख के आस-पास है.परन्तु वे असंगठित हैं. अस्तु अस्मिता की भावना जगानी होगी.मंदिर में दीप जलाने के पहले घर को रौशन करना होगा. तभी कायम हो सकेगी बिहारी अस्मिता और बुलंद हो सकेगी हमारी आवाज.

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