11 April 2008

मंडल - जैसा मैं उन्हें जानता हूँ

- के. के. मंडल

(स्रोत - मंडल विचार)

स्व
. बी पी मंडल बिहार के कुछ गिने-चुने निर्भीक, ईमानदार और स्वाभिमानी नेताओं में थे. उन्होंने पद पाने के लिए स्वाभिमान से समझौता नहीं किया. 1967 में मैं कांग्रेस का संसदीय उम्मीदवार था. मुझे पराजित कर वे विजयी हुए. यहां मैं स्पष्ट कर दूं कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी होते हुए भी हमारा संबंध सौहार्दपूर्ण था.
मंडल जी का स्वाभिमान आज के छोटे राजनेताओं को पसन्द नहीं आता था. उन्हें ये लोग अभिमानी मानते थे. इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पडा. 1967 के संसदीय चुनाव के बाद महामाया प्रसाद सिन्हा मत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री बनाये गये. इनका स्वास्थ्य मंत्री बनना तत्कालीन सर्वमान्य नेता डा रामनोहर लोहिया को अच्छा नहीं लगा.वे चाहते थे कि मंडल जी संसद में आकर कांग्रेस सरकार का विरोध करें. किन्तु इसी बीच एक घटना घट गयी.श्री उर्मिलेश झा, डा लोहिया के तथाकथित आप्त सचिव ने मंडल जी के मंत्रिमंडल में बने रहने की आलोचना की. यदि इस तरह का बयान नहीं आता तो शायद वे मंत्रिमंडल से इस्तीफा भी दे देते. किन्तु इस बयान से वे आहत हुए और संयुक्त समाजवादी पार्टी से 28 अगस्त 1967 को नाता तोडक़र नयी पार्टी शोषित दल का गठन कर लिया. इस दल ने कांग्रेस की मदद से महामाया सरकार के खिलाफ 26 जनवरी 1968 को अविश्वास प्रस्ताव लाया जो 150 के मुकबले 168 से पारित हो गया. श्री बीएनझा, पूर्व मुख्यमंत्री ने कांग्रेस के समर्थन की कटु आलोचना की ओर इस गठबंधन का मुखर विरोध किया. 1 फरवरी 1968 को श्री बीपी मंडल के नेतृत्व में शोषित दल की सरकार बन गयी. यादव जाति से ये प्रथम मुख्यमंत्री हुए. श्री बीएन झा गुट के कांग्रेसी चुप नहीं बैठे और उनलोगों ने मंडल जी की सरकार को गिराने का मन बना लिया. शोषित दल सरकार के प्रबल समर्थकों में अन्य कांग्रेसी नेता थे. होली के अवसर पर राजनीतिक गतिविरोध तेज हो गयी थी.हमारे सहपाठी स्व महावीर प्रसाद यादव भी राज्य शिक्षा मंत्री बनाये गये थे. उन्होंने मुझसे आग्रह कियाकि तत्कालीन कांग्रेस विधायक दल के नेता महेश प्रसाद सिन्हा से मुलाकात की जाये ताकि कांग्रेस के रवैये का पता चल सके. श्री महावीर जी अन्य मंत्रियों के साथ में महेश बाबू के यहां गये. महेश बाबू शालीन व्यक्ति थे. उन्होंने मंत्रियों को हटाकर मुझसे वार्ता की क्योंकि मैं कांग्रेस का सदस्य था. उन्होंने संकेत दिया कि बीएन झा के समर्थक इस सरकार के खिलाफ हैं. वे लोग कांग्रेस से संबंध तोड लेने का फैसला करने जा रहे हैं. अत: आप मुख्यमंत्री जी से इस संबंध में वार्ता करें.इसी कम में मैं श्री भोला पासवान शास्त्री जी से भी मिला. उन्होंने स्पष्ट कहा कि वे शोषित दल सरकार के विरोध में हैं और अविश्वास प्रस्ताव लाने जा रहे हैं. उनसे स्पष्ट संकेत मिल गया कि अविश्वास प्रस्ताव की सारी तैयारी हो चुकी है. उनसे मिलने के बाद मैं सीधे तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री बीपी मंडल जी के निवास पर गया और उनसे वार्ता की. इससे वे तनिक भी विचलित नहीं हुए और उन्होंने निर्णय लिया कि परिस्थिति से मुकाबला किया जायेगा. उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया और उनकी सरकार गिर गयी. यद्यपि उनकी सरकार 47 दिनों की रही पर उन्होंने जिस प्रशासनिक दक्षता का परिचय दिया, उसकी चर्चा राजनीतिक क्षेत्र में वर्षों रही.
उनके जीवन का दूसरा अध्याय 1977 से शुरू होता है, जब वे जनता पार्टी के सांसद के रूप में निर्वाचित हुए. उनके हितैषियों को उम्मीद थी कि श्री मोरारजी देसाई के मंत्रिमंडल में काबीना मंत्री बनाये जायेंगे किन्तु ऐसा नहीं हुआ. कुछ दिनों के बाद उन्हें द्वितीय पिछडा वर्ग आयोग का अध्यक्ष बनाया गया. उद्धाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री, श्री मोरारजी देसाई के साथ तत्कालीन उपप्रधान मंत्री द्वय श्री जगजीवन राम और और चौधरी चरण सिंह भी थे. उद्धाटन समारोह के अवसर पर मुझे भी निमंत्रण मिला था, अत: इस अवसर पर उपस्थित था. इसका उल्लेख करना उचित समझता हू/ कि चौधरी चरण सिंह, इस आयोग के गठन के विरोध में थे क्योंकि वे जातिगत आरक्षण का विरोध करते थे और आर्थिक आधार पर आरक्षण के पक्षधर थे. मंडल जी ने मुझे भीपिछडा वर्ग आयोग का संवाचित सदस्य बनाया था. इस हैसियत से आयोग के कार्यकलाप में भाग लेने का मुझे अधिकार था.
1980 संसदीय चुनाव में इनके सामने धर्म संकट था. एक तरफ श्री मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री से हट गये थे. और चौधरी चरण सिंह, लोकदल के नेता, भारत सरकार के प्रधानमंत्री हो गये थे. बिहार के यादवों में एक भ्रामक प्रचार था कि जाट-यादव एक ही कुल के हैं. किन्तु बिहार के यादवों ने चौधरी चरण सिंह को फिर से प्रधानमंत्री बनाने के लिये संसदीय चुनाव में लोकदल के उम्मीदवारों का समर्थन किया. मंडलजी यादव बहुल मधेपुरा क्षेत्र से लड रहे थे अत: चुनाव का परिणाम मालूम था. फिर भी राजनीतिक नैतिकता के चलते असफलता को वरण किया. 1952 से ही वे विधायक और सांसद रहे और सदा मधेपुरा के हित की बात करते थे. मधेपुरा को जिला बनवाना भी उनके कार्यक्रम में था और उसके लिए सतत प्रयत्नशील रहे. आयोग का काम पूरा करके पटना लौटे तो उन्होंने मुझसे पूछा - क्या डा जगन्नाथ मिश्र मधेपुरा को जिला बना देगें? मैंने उन्हें कहा कि डा मिश्र मधेपुरा को जिला बनाने जा रहे हैं तो उन्हें बडी प्रसन्नता हुई.उद्धाटन के अवसर पर वे मधेपुरा में उपस्थित थे. उनकी अध्यक्षता में ही मधेपुरा जिला का निर्माण हुआ.
1980 में वे इस उद्देश्य से कांग्रेस में सम्मिलित हुए कि श्रीमती इन्दिरा गांधी की सरकार पिछडे वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफरिश मान ले. सामूहिक हित के लिए कांग्रेस में सम्मिलित हुए. उनका व्यक्तिगत स्वार्थ कतई नहीं था.
जिन सामाजिक-राजनीतिक मानकों को उन्होंने स्थापित किया, उनको हम कायम नहीं रख सके. आज हम राजनीतिक क्षेत्र में उधार के राजनीतिक खिलाडियों से अपना काम चला रहे हैं और इसी में अपनी बहादुरी समझते हैं.

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